विद्युत धारा वर्ग 10 बिहार बोर्ड
बिहार बोर्ड इंटर/Matric परीक्षा 2022 के सभी विद्यार्थी के सभी विषय की सभी प्रकार के प्रश्न का प्रारूप और PDF वर्ग नोट विषयवार सभी प्रकार के study note ( MCQ , Short question long question ) Bharti Bhawan
विद्युत-धारा जिसे बोलचाल की भाषा में बिजली कहा जाता है, का हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारे घरों में बल्ब एवं ट्यूब बिजली से ही जलते हैं। पंखे, पंप और अनेक प्रकार का मशीनें बिजली की मदद से ही चलते हैं।
बिजली या विद्युत-धारा से हमारा तात्पर्य होता है तारों से होकर आवेश का प्रवाह।
हम जानते हैं कि पदार्थ के परमाणुओं की रचना तीन मौलिक कणों से होती है-ऋण आवेशयुक्त इलेक्ट्रॉन धन आवेशयुक्त प्रोटॉन तथा अनावेशित । प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन परमाणु के केंद्रीय भाग में रहते हैं जिसे नाभिक कहते हैं। नाभिक के इर्द-गिर्द कुछ निश्चित कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन घूमते रहते हैं। इलेक्ट्रॉन पर जितने परिमाण का ऋणआवेश रहता है उतने ही परिमाण का धन आवेश प्रोटॉन पर रहता है। परमाणु में इलेक्ट्रॉनों तथा प्रोटॉनों की संख्या बराबर रहती है, अतः परमाणु विद्युततः उदासीन होते है |
चूँकि परमाणुओं से ही वस्तुओं का निर्माण होता है, इसलिए उनमें समान परिमाण में धन तथा ऋण आवेश होने के कारण वे विद्युततः उदासीन होते हैं।कभी-कभी वस्तुओं में धन तथा ऋण आवेश का यह संतुलन बिगड़ता भी है। उदाहरण के लिए, जब हम एक काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ते हैं, तो काँच की छड़ के कुछ इलेक्ट्रॉन रेशम के कपड़े पर चले जाते हैं। फलतः, काँच की छड़ पर धन आवेश का परिमाण अब ऋण आवेश के परिमाण से अधिक हो जाता है और तब हम कहते हैं कि काँच की छड़ धनावेशित हो गई है। रेशम के कपड़े पर चूँकि कुछ अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन आ गए हैं, अतः हम कहते हैं कि रेशम का कपड़ा ऋणावेशित हो गया है। इसी तरह ऐबोनाइट की छड़ को जब ऋणावेशित हो
ऊन से रगड़ते हैं, तो कुछ इलेक्ट्रॉन ऊन से ऐबोना छड़ पर आ जाते हैं, अतः ऐबोनाइट की छड़ ऋणावेश जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी पदार्थ धनावेशित हो जाने का अर्थ है उससे कुछ इलेक्ट्रॉनों का बा निकल जाना और किसी पदार्थ के ऋणावेशित हो जाने क है उसके द्वारा कुछ इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर लेना। दूसरे श में हम कह सकते हैं कि इलेक्ट्रॉनों को खोकर कोई धनावेशित हो जाता है और इलेक्ट्रॉनों को पाल ऋणावेशित।
आवेश संरक्षित:-, उसे न तो उत्पन्न किया जा सकता है। और न ही नष्ट
चालक तथा विद्युतरोधी पदार्थ मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
चालक:- ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत आवेश उनके एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहे जाते हैं एक तो वे जिनसे होकर आवेश एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा सकता है; ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत आवेश उनके एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहे जाते हैं
विद्युतरोधी:- ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक नहीं जाता है विद्युतरोधी कहे जाते हैं।
विद्युत-धारा :- आवेश के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने को आवेश का चालन (conduction) कहते हैं। जब ऐसा होता है तब हम कहते हैं कि विद्युत-धारा का प्रवाह हो रहा है। किसी चालक पदार्थ में, किसी दिशा में दो बिंदुओं के बीच आवेश के व्यवस्थित (ordered) प्रवाह को विद्युत-धारा कहते हैं।
धनावेश एवं ऋणावेश.
- कुछ पदार्थ इस प्रकार से आवेशित होते हैं, जैसा कि रेशम के कपड़े से रगड़ने पर काँच होता है। । तब, हम कहते हैं कि ऐसे पदार्थ धनावेशित हो गए हैं (या उन्होंने धन आवेश प्राप्त कर लिया है)। धन आवेश को (+) चिह्न द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
- कुछ अन्य पदार्थ इस प्रकार से आवेशित होते हैं, जैसा कि ऊन से रगड़ने पर ऐबोनाइट हो जाता है। तब, हम कहते हैं कि ऐसे पदार्थ ऋणावेशित हो गए हैं (या उन्होंने ऋणआवेश प्राप्त कर लिया है)। ऋण आवेश को (-) चिह्न द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
विद्युत विभव:– किसी विंदु पर विद्युत विभव कार्य का वह परिमाण है जो प्रति एकांक (इकाई) आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है।
V=w/q
द्रष्टव्य:-अनंत पर विद्युत विभव शून्य माना गया है।
विद्युत स्थितिज ऊर्जा :-जब व्यक्ति यह कार्य करता है, तो उसकी ऊर्जा में हानि होती है। ऊर्जा-संरक्षण सिद्धांत से यह ऊर्जा के निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाएगी। इसे हम विद्युत स्थितिज ऊर्जा कहते
विद्युत विभव का SI मात्रक:– यदि 1 कूलॉम (C) धन आवेश को अनंत से किसी विंदु तक लाने में 1 जुल (J) कार्य सम्पन्न हो, तो उस बिंदु पर विद्युत विभव 1 वोल्ट (V) कहलाता है।
आवेशित वस्तुओं का विभव यदि एक धन आवेश +q को एक अनावेशित वस्तु की ओर लाया जाए तो हमें कोई कार्य नहीं करना पड़ता। अतः, विद्युत विभव की परिभाषा के अनुसार अनावेशित वस्तु का विभव शून्य होता है। परंतु, उसी धन आवेश +q को जब हम एक धनावेशित वस्तु की ओर लाते हैं तो हमें प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध कुछ कार्य करना पड़ता है। अतः, एक धनावेशित वस्तु का विभव धनात्मक होता है। उसी प्रकार, एक ऋणावेशित वस्तु का विभव ऋणात्मक होता है।
विभवांतर:-, किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विभवांतर की माप उस कार्य से होती है जो प्रति एकांक (इकाई) आवेश को एक बिंदु से दूसरे विंदु तक ले जाने में किया जाता है।
विभवांतर का भी SI मात्रक:– 1कूलॉम (C) धन आवेश को एक बिंदु से दूसरे ले जाने में 1 जूल (J) कार्य करना पड़े तो इन दोनो। के बीच विभवांतर वोल्ट (V) कहलाता है।
सेल एवं बैटरी किसी चालक के दोनों सिरों के बीच विभवांतर बनाए रखने की एक सरल विधि यह है कि उसे किसी सेल या बैटरी के ध्रुवों के बीच जोड़ दिया जाए। सेल या बैटरी एक ऐसी युक्ति है, जो अपने अंदर हो रहे रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा सेल के दोनों इलक्ट्रोडों के बीच विभवांतर बनाए रखती है।
विद्युत-धारा की दिशा धन आवेश के प्रवाह की दिशा मानी जाती है। इसे परपरागत धारा की दिशा भी कहा जाता है। अब हम यह जान चुके हैं कि धातु के चालकों में धारा का प्रवाह उनके भीतर विद्यमान मुक्त इलेक्ट्रॉन की गति के कारण ही होता है। अतः, धातुओं में परंपरागत विद्युत धारा की दिशा, अर्थात धन आवेश के प्रवाह की दिशा वास्तविक आवेश वाहकों, अर्थात ऋणावेशित इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की दिशा के विपरीत होती है।
विद्युत-धारा की प्रबलता :- किसी चालक के किसी अनुप्रस्थ-काट (cross section) को पार करनेवाली विद्युत-धारा की प्रबलता उस अनुप्रस्थ-काट से होकर प्रति एकांक (इकाई) समय में प्रवाहित आवेश का परिमाण है। यदि किसी अनुप्रस्थ-काट से । समय में | आवेश प्रवाहित होता हो, तो उस काट को पार करनेवाली
I=Q/t
किसी चालक के अनुप्रस्थ-काट से यदि एक सेकंड (s). एक कूलॉम (C) आवेश प्रवाहित होता है, तो उस काट से पार करनेवाली विद्युत-धारा की प्रबलता एक ऐम्पियर (A) कही जाएगी,
ऐमीटर तथा वोल्टमीटर
विद्युत-परिपथ की धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर (ammeter) कहा जाता है। इसे चित्र में दिए गए संकेत से दर्शाया जाता है। ऐमीटर को किसी परिपथ | में जुड़े उपकरणों के साथ इस प्रकार जोड़ा ऐमीटर तथा वोल्टमीटर जाता है कि परिपथ | की कुल धारा इससे होकर प्रवाहित हो इस प्रकार के संयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहते | हैं। ऐमीटर को परिपथ में इस प्रकार लगाया जाता है कि धारा – उसके धनात्मक टर्मिनल (+) से प्रवेश करे तथा ऋणात्मक टर्मिनल (-) से बाहर निकले।
जिस यंत्र से किसी विद्युत परिपथ के किन्हीं दो बिंदुओ के बिच विभवांतर को मापा जाता है, उसे बोल्टमीटर कहा जाता है।
ऐमीटर और बोल्टमीटर की तुलना ऐमीटर
ऐमीटर |
वोल्टमीटर |
1. यह किसी विद्युत-परिपथ में धारा की प्रबलता को 2. यह किसी विद्युत-परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा है। 3. इसका स्केल ऐम्पियर (A) में अंकित रहता है। |
1. यह किसी विद्युत-परिपथ में किन्हीं दो बिंदुओं के मापता है। बीच विभवांतर को मापता है। 2. यह किसी विद्युत-परिपथ में समांतरक्रम में जोड़ा जाता है। 3. इसका स्केल. वोल्ट (V) में अंकित रहता है। |
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